भारत में, शादी के रद्दीकरण के लिए पात्रता का निर्धारण कुछ विधिक आधारों पर किया जाता है जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में निर्दिष्ट है।
कृपया ध्यान दें कि यह कानूनी सलाह नहीं है, और अपनी विशिष्ट स्थिति को समझने के लिए परिवार कानून या वैवाहिक मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले वकील से परामर्श करना महत्वपूर्ण है। हालाँकि, हम भारत में रद्दीकरण के आधारों पर कुछ सामान्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं:
शून्य विवाह: एक शून्य विवाह को शुरुआत से ही अमान्य माना जाता है, और इसे ऐसे माना जाता है जैसे यह कभी हुआ ही न हो।
निम्नलिखित परिस्थितियाँ एक शून्य विवाह का कारण बन सकती हैं:
- अगर विवाह के समय कोई भी पक्ष पहले से ही विवाहित है या स्थायी वैवाहिक संबंध में है।
- अगर पक्ष वजहनिक संबंधों (जैसे, नजदीकी रक्त संबंधी) के भीतर हैं।
- अगर कोई भी पक्ष मानसिक रूप से अस्वस्थ है या विवाह के परिणामों को समझने में मानसिक रूप से अक्षम है।
शून्यनीय विवाह: एक शून्यनीय विवाह को न्यायालय द्वारा रद्द किए जाने तक वैध माना जाता है। निम्नलिखित परिस्थितियाँ एक विवाह को शून्यनीय बना सकती हैं:
- विवाह का पूरा न होना: अगर विवाह दोनों पक्षों में से किसी की नपुंसकता या विवाह को पूरा करने के लिए किसी भी पक्ष की अनिच्छा के कारण पूरा नहीं हुआ हो।
- धोखाधड़ी से सहमति प्राप्त करना: अगर विवाह के लिए सहमति बल, धोखाधड़ी, या कुछ तथ्यों को छिपाकर प्राप्त की गई हो, जो यदि ज्ञात होते तो शादी करने के निर्णय को प्रभावित करते।
- मानसिक विकार: अगर कोई भी पक्ष किसी मानसिक विकार से पीड़ित है या आवर्ती पागलपन के दौरों का शिकार है।
- शारीरिक अक्षमता: अगर कोई भी पक्ष ऐसी शारीरिक अक्षमता से पीड़ित है जो विवाह को पूरा होने से रोकती है।
यह महत्वपूर्ण है कि ध्यान दिया जाए कि भारत में आपके निवास करने वाले राज्य के आधार पर रद्दीकरण की प्रक्रिया और विशिष्ट आवश्यकताएं भिन्न हो सकती हैं।
एक कानूनी पेशेवर से परामर्श करना सलाहनीय है जो आपको प्रक्रिया के माध्यम से मार्गदर्शन कर सकता है और आपकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर सलाह दे सकता है।
याद रखें, यह जानकारी कानूनी सलाह नहीं है, और सटीक मार्गदर्शन के लिए पेशेवर कानूनी सहायता लेना हमेशा अनुशंसित है।